भारत के शाही लोगों के ठाट-वाट- जब सन् 1947 में भारत आजाद हुआ, तो सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में उन्होंने 500 से अधिक रियासतों का विलय किया था। इस कदम से न केवल भारतीय संघर्ष की शान में एक समानता का संदेश दिया गया बल्कि राजघरानों को भी नई अर्थव्यवस्था के संप्रेषण का सामना करना पड़ा।
लेकिन, इस नए दौर में, इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, राजघरानों के लिए प्रिवी पर्स या पेंशन की योजना को समाप्त कर दिया गया। इसके परिणामस्वरूप, राजघराने अपनी आजीविका के लिए नए स्रोतों की खोज में निकल पड़े।
हेरिटेज होटल और उनकी महत्वपूर्ण भूमिका
भारतीय राजघरानों के लिए हेरिटेज होटल एक मुख्य स्रोत बन गए हैं। उदाहरण के लिए, उदयपुर के महाराणा प्रताप के वारिस श्रीजी अरविंद सिंह मेवाड़ एचआरएच ग्रुप ऑफ होटल्स के अध्यक्ष हैं और उनके पास कई हेरिटेज पैलेस होटल्स हैं।
जोधपुर के महाराजा गज सिंह के परिवार के पास भी अपना हेरिटेज होटल है, ‘उमेद भवन पैलेस’, जो भारत के प्रमुख लग्जरी होटलों में एक है। यहां के होटल न केवल भारतीय बल्कि विदेशी अतिथियों को भी रॉयल अनुभव प्रदान करते हैं।
राजघरानों का सिल्क व्यापार
दक्षिण भारत के मैसूर के राजघराने, वाडियार फैमिली, के पास भी अपना अमीर व्यापार है। उनकी संपत्ति का मूल्य करीब 10,000 करोड़ रुपये है। मैसूर के महाराज यदुवीर कृष्णदत्त चामराज वाडियार के पास ‘रॉयल सिल्क ऑफ मैसूर’ जैसे सिल्क ब्रांड का मालिकाना हक है।
राजघरानों के स्रोत बदल गए हैं
इस प्रकार, भारतीय राजघराने अपने आजीविका के स्रोत में नए रूपों को धुंध रहे हैं। प्राचीन समय की बातों से लेकर आज के युग तक, ये राजघराने देश के धनी वारिस हैं, जो न केवल अपनी विरासत को संरक्षित रखने का काम कर रहे हैं बल्कि उसे नए आय के स्रोतों से भरपूर कर रहे हैं।
राजघरानों के स्रोतों में परिवर्तन एक नया चेहरा है, जो उन्हें आधुनिक भारत की आधुनिकता के साथ मिलाता है। ये राजघराने न केवल अपने परंपरागत धन का संरक्षण करते हैं, बल्कि उनके स्रोतों में परिवर्तन कर उन्हें आज के समय के साथ चलने की क्षमता भी प्रदान करते हैं।